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हरिहरपुरी की कुण्डलिया




हरिहरपुरी की कुण्डलिया


पावन मन कैसे बने , इस पर सोच विचार।

विकृति बाहर फेंकते, करते रह उपचार।।

करते रह उपचार, दया सब के प्रति रखना।

सब के मन को सींच, कलश अमृत ले चलना।।

कहें मिसिर कविराय, बरसना बन मधु सावन।

उठे प्रेम का ज्वार, बने मन शीतल पावन।।






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बेहतरीन

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